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बाप बड़ा ना भइया सबसे बड़ा रुपैया

Updated: Feb 5, 2023

"Money Makes a Mare Go"


समय के साथ साथ मनुष्य की सोच भी तेजी से बदल रही है। वर्तमान समय में ज्यादातर लोगों की ऐसी सोच बन गई है कि जिसके पास धन है उसी के पास सारे सुख है और यह समाज भी उसी का जयकारा लगाता है।


मनुष्य प्रकृति की सबसे सुंदर संरचना है। उसके पास सोचने की क्षमता है इसीलिए वह अन्य प्राणियों से अलग है। आज नहीं तो कल उसे यह सच्चाई जरूर समझ में आएगी कि धन दौलत रिश्तो के लिए होता है, रिश्ते धन दौलत के लिए नहीं। जब यह सोच बन जाएगी तब भी समाज में धन दौलत और रुपया महत्वपूर्ण रहेगा, क्योंकि जीवन जीने के लिए उसकी बड़ी जरूरत होती है, मगर धन ही सब कुछ हो जाए तो पतन की शुरुआत होती है यह बात सब समझ जाएंगे।.”



BAAP BADA NA BHAIYA SABSE BADA RUPAIYA


समय के साथ साथ मनुष्य की सोच भी तेजी से बदल रही है। वर्तमान समय में ज्यादातर लोगों की ऐसी सोच बन गई है कि जिसके पास धन है उसी के पास सारे सुख है और यह समाज भी उसी का जयकारा लगाता है। धन सारे रिश्ते पर सारे नातों के ऊपर ईमान पर और सारे मानवीय मूल्यों पर हावी होता जा रहा है।


आज का प्रगतिशील इंसान नाक की सीध में भौतिकता की चकाचौंध में सीधा दौड़ता चला जा रहा है। सांसारिक उपलब्धि रिश्तो के लिए हुआ करती थी। वही अब सारे रिश्ते भी रुपए के लिए कुर्बान किए जाने लगे हैं अर्थात धन दौलत के लिए रिश्ते हो गए हैं। मनुष्य की बदलती हुई है सोच समाज में एक प्रकार से मूल्य हीनता और नीरसता को जन्म दे रही है। धन की चाह में मनुष्य बेतहाशा भागा जा रहा है। उसे लगता है कि धन प्राप्त करके वह सुखी हो जाएगा। मनुष्य भूल गया है कि धन-दौलत और रुपए से केवल सुविधाएं खरीदी जा सकती है। सुख तो तक मिलता है जब मनुष्य दूसरों के लिए कुछ करता है, अपनों के काम आता है।“वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे, यही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप भी चरे” । कविता की ये पंक्तियां यही बताती हैं कि परोपकार करना मनुष्य का मूल धर्म है। मगर मनुष्य आज स्वार्थ और लालच के वशीभूत होकर मानवता भूल गया है। उचित अनुचित किसी भी प्रकार से हर कोई धनी बनना चाहता है। हर कोई एक दूसरे से आगे निकल जाने की गला काट प्रतियोगिता में लगा हुआ है। किसी को नहीं पता कि आखिर उसकी यह दौड़ कब तक और कहां तक जारी रहेगी। वर्तमान समय में सुख सुविधाएं और साधन तो खूब बड़ा है मगर शांति और प्रेम कहीं दिखाई नहीं देते। धमकी चाहने रिश्तो में दरार डाल दिया है। देश के अलग-अलग शहरों की नहीं विदेशों तक की खाक छानने के लिए लोग तैयार हैं। घर में बड़े बुजुर्ग उपेक्षित है। उनके साथ समय बिताने वाला आज कोई नहीं है। एकाकी जीवन जीने के लिए मजबूर है। धन के लिए भाई भाई में मुकदमे बाजी हो रही है। कोई भी ऐसा निकट रिश्ता आज नहीं बचा है जिसके बीच धन को लेकर विवाद घर न कर गया हो। इतना ही नहीं लोग रिश्तो का गला भी घोंट देते हैं। समाचार सरकार में फैला हुआ भ्रष्टाचार भी मनुष्य की इसी वृत्ति का परिणाम है। हमारे देश की परंपरा थी कि हम माता-पिता में ईश्वर को देखते थे मगर आज वही उपेक्षित हो गए हैं। जिस देश में राम का आदर्श हो, जिन्होंने पिता की आज्ञा पर अपना सर्वस्व त्याग दिया और जिस देश में भारत और लक्ष्मण जैसे भाइयों का आदर्श हो जिन्होंने अपने भाई में अपने ईश्वर को देखा। पत्नी के रूप में सीता का उदाहरण आज भी दिया जाता है क्योंकि उन्होने रावण जैसे महा प्रतापी धनी और सब प्रकार से संपन्न कि प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। लोग यह भी नहीं समझते कि आखिर इन महान चरित्रों की पूजा क्यों होती है? जीवनभर इन्होंने रिश्तो के लिए संघर्ष किया, मानवता के लिए युद्ध किया और चीन की मूल धारणा परहित और परोपकार थी। इन्होंने अपने जीवन में भोग नहीं किया बल्कि अपने जीवन को ही उपभोग्य बना दिया। इसी कारण इनकी पूजा होती है। यह देखने और समझने की फुर्सत आज किसी के पास नहीं है। एक पल रुक कर अगर यह सोचा जाए तो निश्चित रूप से इस कहावत को बदला जा सकता है कि “बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया”।


मनुष्य प्रकृति की सबसे सुंदर संरचना है। उसके पास सोचने की क्षमता है इसीलिए वह अन्य प्राणियों से अलग है। आज नहीं तो कल उसे यह सच्चाई जरूर समझ में आएगी कि धन दौलत रिश्तो के लिए होता है, रिश्ते धन दौलत के लिए नहीं। जब यह सोच बन जाएगी तब भी समाज में धन दौलत और रुपया महत्वपूर्ण रहेगा, क्योंकि जीवन जीने के लिए उसकी बड़ी जरूरत होती है, मगर धन ही सब कुछ हो जाए तो पतन की शुरुआत होती है यह बात सब समझ जाएंगे।

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