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पर्यावरण और उसकी सुरक्षा

मानव प्रगति में विज्ञान और उसकी खोजों ने बड़ी मदद की है। इस प्रगति की गति पिछले कुछ दशकों में बहुत तेज हुई है। विकास की इसी तेजी का असर पर्यावरण पर भी पड़ा है, यह असर इतना गहरा और गंभीर है कि पर्यावरण के मौलिक अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है।


विकास की अंधी दौड़ की मार सबसे अधिक पर्यावरण पर पड़ा है। ओजोन की परत पतली ही नहीं हुई है वरन उस में छेद भी दिखाई देने लगे हैं, जिसके कारण तरह-तरह की बीमारियां और धरती का तापमान बढ़ा है। पेड़ों की हो रही अंधाधुंध कटाई के कारण हवा जहरीली हो गई है, जलवायु में भयानक परिवर्तन नजर आने लगा है और ग्लेशियर पिघल कर कई सारे द्वीपों के अस्तित्व को चुनौती देने लगे हैं। मिट्टी पानी और हवा सब प्रदूषित हो चुके हैं। मनुष्य ने अभी तक धरती के अलावा और किसी दूसरे ग्रह या उपग्रह की खोज नहीं की है जहां जीवन जिया जा सके। इसलिए यह आवश्यक है कि हम सब मिलकर पर्यावरण की सुरक्षा का उपाय खोजें। इस खोज में केवल सरकार अथवा कोई बड़ा संगठन ही नहीं बल्कि आम लोगों को भागीदारी निभानी होगी। जागरूकता और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता कहो ना इसे बचाने के सबसे कारगर हथियार होंगे। नदी वन पहाड़ सागर और हमारी धरती को फिर से पूजने योग्य सिद्ध करने की जरूरत है। विकास को रोककर नहीं बल्कि विकास के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए यह जरूरी है।



इंसानों के विवेक पर भरोसा है कि वह समय रहते कोई ना कोई रास्ता जरूर निकाल लेंगे जिससे पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। मानव जीवन पर संकट पहली बार नहीं आया है। इस बार भी हमारे वैज्ञानिक और नीति निर्माता इस चुनौती से निकलने की राह खोज लेंगे।

 
 
 

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